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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 40 


कच की कुटिया के बाहर खड़ी खड़ी देवयानी सोचने लगी कि कच उसके लिए क्या उपहार लाया होगा ? वह क्या हो सकता है ? कच उसके लिए उपहार लाया ही क्यों है ? क्या देवलोक से चलते समय ही उसके मन में उपहार लाने की बात आ गई थी ? संभवत: आ ही गई होगी तभी तो वह देवलोक से उसके लिए उपहार लेकर आया है । क्या हो सकता है वह उपहार ? क्या कोई सोने का आभूषण है या देवलोक की कोई अद्भुत वस्तु है ?  उसे बड़ा अच्छा भी लग रहा था कि उसके पास देवलोक की कोई वस्तु रहेगी । क्या मृत्यु लोक में और किसी के पास है देवलोक की कोई वस्तु ? नहीं है ना ? केवल देवयानी के पास होगी वह अनुपम वस्तु । इस "उपहार" से वह बाकी सब लोगों से कितनी पृथक हो जाएगी ना ? यही सोचकर उसका मन कुलांचें मारने लगा था । 
उसके विचारों की अनवरत श्रंखला चलती रहती यदि कच अपनी कुटिया से बाहर न आता । उसके हाथ में लाल रंग का कोई वस्त्र था । कच ने वह वस्त्र देवयानी को देते हुए कहा "मेरी मां ने विशेष तौर पर तुम्हारे लिए भेजी है यह साड़ी । यह एक अद्भुत साड़ी है जो केवल देवलोक में ही मिलती है अन्य लोकों में नहीं । उन्होंने कहा था कि यह साड़ी देवयानी के पास देवलोक की धरोहर के रूप में रहेगी । लो , इसे स्वीकार करो" । कच ने विनम्रतापूर्वक कहा । 

देवयानी असमंजस में पड़ गई । यह तो वास्तव में एक विचित्र उपहार था । कच की माता ने इतने स्नेह के साथ इसे प्रेषित किया है तो इस उपहार को उसे स्वीकार करना ही होगा अन्यथा एक माता के हृदय को ठेस पहुंचेगी । उसने वह उपहार स्वीकार कर लिया और वह वहां से चल दी । कच भी उसके साथ साथ चल दिया । इसके पश्चात उन दोनों में कोई वार्तालाप नहीं हुआ । दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या बोलें ? दोनों चुपचाप चलते रहे जैसे रेल की पटरी साथ साथ चलती रहती हैं शांति के साथ । थोड़ी देर में शुक्राचार्य की कुटिया आ गई । कच बाहर ही खड़ा रहा और देवयानी अंदर चली गई । उसके मन ने कहा भी कि एक बार कच को अंदर आने के लिए बोल दे किन्तु शब्द उसके गले के अंदर ही दबकर रह गये । कच चला गया । 

देवयानी ने कच के द्वारा उपहार में दी गई उस साड़ी को खोल लिया । बहुत सुन्दर साड़ी थी वह । रेशम से भी अधिक मखमली और लाल सुर्ख रंग होने के कारण वह लग भी बहुत सुंदर रही थी । देवयानी ने अपने सिर पर उसका पल्लू रखकर स्वयं को आईने में देखा तो वह एक वधू के रूप में दिखाई दी । इस दृश्य को देखकर देवयानी लजा गई । वह अभी वधू बनना नहीं चाहती थी । उसने झटपट उस साड़ी की तह बनाई और उसे संदूक में रख दिया । शुक्राचार्य के आने के बाद वह उन्हें दिखाकर ही पहनेगी । 

वह कच के बारे में सोचने लगी । जैसा साधिका ने कहा उससे कहीं अधिक विनम्र, शालीन और मृदुभाषी था कच । बुद्धिमान तो वह था ही , ये तो उसने "साहित्य संगम" कार्यक्रम में ही देख लिया था । शुक्राचार्य ने कार्यक्रम की समस्त व्यवस्थाऐं उसके सुपुर्द कर दी थीं । इसी से सिद्ध हो रहा था कि वह कितना आज्ञाकारी, कर्मठ और बुद्धिमान है । जहां तक उसके रूप का प्रश्न है , उसने उस कार्यक्रम में एक नजर से उसे देखा था । सूर्य की भांति तेज था उसके मुख पर । उसकी आंखें चौंधिया गई थी । उसका उसे पुन: देखने का साहस नहीं हुआ था । जिस जिस ने कच के बारे में जो जो भी बताया था , कच उससे सवाया ही निकला । "तो फिर उससे ईर्ष्या क्यों" ? उसने अपने मन से पूछा । पर इसका कोई उत्तर उसके मन ने नहीं दिया । वह अपने काम में लग गई । 

रात में जब शुक्राचार्य आये तो देवयानी ने उनके लिए भोजन परोसा । शुक्राचार्य हाथ मुंह धोकर भोजन करने बैठे । देवयानी ने पूछ ही लिया 
"क्या काम था महाराज को" ? 
"कोई विशेष नहीं । साहित्य संगम कार्यक्रम के संबंध में ही महाराज से कुछ वार्तालाप हुआ था । विभिन्न कवियों और साहित्यकारों के बारे में चर्चा हुई थी और ... " कहते कहते शुक्राचार्य रुक गए । 
"और क्या तात्" ? देवयानी ने उत्सुकता से प्रश्न किया । 
"और कच के बारे में पूछ रहे थे कि यह कौन है और कहां से आया है" ? 
"क्या आपने बता दिया उसके बारे में" ? 
"हां भी और नहीं भी । सब कुछ नहीं बताया । बस इतना ही बताया कि वह उनके मित्र का पुत्र है । महाराज ने इससे अधिक नहीं पूछा और मैंने अपनी ओर से आगे से नहीं बताया" । शुक्राचार्य बोले 
"पर आपने सब कुछ सत्य क्यों नहीं बताया महाराज को ? कालान्तर में जब उन्हें गुप्तचरों से ज्ञात होगा कि वह देवलोक से आया है तब वे क्या सोचेंगे आपके बारे में" ? देवयानी के चेहरे पर चिंता के भाव थे । 

देवयानी की इस बात पर शुक्राचार्य क्रोधित हो गये । वे फुंफकारते हुए बोले "क्या सोचेंगे महाराज ? क्या ये सोचेंगे कि दैत्य गुरू ने एक देव पुत्र को अपने आश्रम में क्यों रखा और उसे शिक्षा क्यों दी ? आश्रम पर शुक्राचार्य का एकाधिकार है देव । इस आश्रम में किसे प्रवेश देना है और किसे नहीं, इसका निर्णय केवल शुक्राचार्य यानि मैं ही कर सकता हूं, अन्य कोई नहीं कर सकता है । इससे क्या महाराज मुझे राष्ट्र द्रोही मान लेंगे ? यदि वे ऐसा मानते हों तो मानें, मुझे कोई चिंता नहीं है" । 
शुक्राचार्य के चेहरे से आग के शोले निकल रहे थे । देवयानी अपने पिता के इस रूप को देखकर सहम गई । उसने कभी इतने क्रोध में नहीं देखा था अपने पिता को । वह चुपचाप उन्हें भोजन कराने में व्यस्त हो गई । 

घर का कार्य करते करते रात बहुत बीत गई थी । सावन का महीना चल रहा था । आसमान स्वच्छ था । आसमान में एक भी बादल दिखाई नहीं दे रहा था । तारे टिमटिमा रहे थे और चंद्र देव अपने साथ सौन्दर्य की देवी कौमुदी को लेकर आसमान में विहार करने निकले थे । कौमुदी की शीतल किरणें पृथ्वी की सतह को चूमने लगी थीं । शीतल वायु मंद मंद बह रही थी जिससे उनकी पुष्प वाटिका के पुष्पों की सुगंध से पूरी कुटिया महक रही थी । देवयानी का मन बाहर आंगन में सोने का करने लगा । उसने आंगन में एक चारपाई बिछाई और उस पर एक दरी डालकर लेट गई । 

देवयानी की आंखों से नींद कोसों दूर थी । उसकी दृष्टि बार बार व्योम की ओर जा रही थी । व्योम में चंद्र देव विहार करने निकले हुए थे । उनकी कांति के सम्मुख समस्त तारागण "श्री हीन" हो गये थे । जिस तरह आसमान में तारों के मध्य चंद्रमा सुशोभित हो रहा था उसी तरह आश्रम में कच भी चंद्रमा के सदृश सुशोभित हो रहा था । चंद्रमा और कच में बहुत सी समानताऐं दृष्टिगत हो रही थी देवयानी को । जैसे कि रूप । कच का रूप चंद्रमा से कम नहीं था । या यों भी कह सकते हैं कि चंद्रमा का रूप कच के सामने कांतिहीन लग रहा था । जिस तरह चन्द्रमा के आने से समस्त तारागण की कांति फीकी पड़ जाती है उसी प्रकार कच के आने से शुक्राचार्य के समस्त शिष्यों की कांति धुंधला गई थी । 

आज उसने प्रथम बार कच को देखा था । एक सम्मोहिनी शक्ति थी उसमें जो सबको अपनी ओर खींच रही थी । ये कैसा आकर्षण था उसमें जो बरबस अपनी ओर खींचे जा रहा था । जिस प्रकार नदी का जल अपने प्रवाह के साथ मनुष्य को भी बहा ले जाता है उसी प्रकार कच का व्यक्तित्व भी उसे अपनी ओर खींच रहा था । वह ऐसे कैसे खिंचती चली जाती ? वह तो स्वयं सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति है , बुद्धि का भंडार है , ज्ञान का सागर है । और सबसे बड़ी विशेषता यह है उसकी कि वह गुरुओं के गुरू शुक्राचार्य की पुत्री है । क्या यह गुण है किसी अन्य में है ? नहीं ना ? तो फिर वह कच की ओर खिंची क्यों चली जाएगी ? क्या उसके व्यक्तित्व में इतनी शक्ति नहीं है कि कच उसकी ओर खिंचा चला आये ? हां, उसके सौन्दर्य में वह चुंबक है जो मनुष्य तो मनुष्य यक्ष , गंधर्व और देवताओं को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकता है । 

उसके अभिमानी मन में यह भाव पुष्ट होने लगा । माना कि कच एक विलक्षण व्यक्तित्व का स्वामी है किन्तु देवयानी क्या कोई साधारण युवती है ? इस धारणा से उसके स्वाभिमान को अल्प संतुष्टि मिली । अभिमानी व्यक्तियों का यह महत्वपूर्ण गुण होता होता है कि उन्हें अपने से अधिक गुणी , बुद्धिमान और सुन्दर कोई व्यक्ति दिखाई ही नहीं देता है । यदि कोई व्यक्ति ऐसे व्यक्ति के बारे में वर्णन भी करता है तो अभिमानी व्यक्ति तत्क्षण उसके दोष गिनाने प्रारंभ कर देता है और उसे स्वयं से हीन बताने की चेष्टा करता है । 

देवयानी की दुविधा विचित्र थी । उसका मन कच की ओर दौड़ रहा था किन्तु बुद्धि कह रही थी कि उसे कच की ओर नहीं अपितु कच को उसकी ओर दौड़ना चाहिए क्योंकि उसमें कच से कई गुना अधिक आकर्षण है । दूसरा , हर कोई कच का प्रशंसक बनकर घूम रहा है , यह बात देवयानी को बिल्कुल नहीं सुहा रही थी । तीसरे , कच से उसका संबंध ही क्या है जो वह उसके बारे में सोचे ? 

व्यर्थ की बातें मस्तिष्क में रखने से तनाव बढता है और तनाव के रहने से चेहरे की कांति नष्ट हो जाती है । वह कच के बारे में सोचना ही बंद कर दे तो सारी समस्याऐं स्वत: ही समाप्त हो जायेंगी । पर क्या ऐसा हो सकता है ? मन इंद्रियों का दास होता है । इंद्रियां मन को आसक्ति की ओर ले जाती हैं । मन की स्थिति भी उसी प्रकार की होती है जिस प्रकार कोई बाढ में फंसा व्यक्ति जल के प्रवाह में बहता ही जाता है । उसके लाख प्रयास करने पर भी वह कुछ कर नहीं पाता है । इसी प्रकार मन भी इंद्रियों के वशीभूत होकर अपना अस्तित्व भूल जाता है । मन को वश में करने के लिए बुद्धि और विवेक है किन्तु मन कामनाओं के वश में होने से वह बुद्धि और विवेक पर आसक्ति का परदा डाल देता है । इससे मनुष्य का विवेक समाप्त हो जाता है और वह आसक्ति के गहरे दलदल में धंसता चला जाता है । देवयानी भी कामनाओं के वशीभूत होकर आसक्ति रूपी दलदल की ओर तेजी से बढने लगी थी । 

श्री हरि 
11.7.23 

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8 Comments

Gunjan Kamal

14-Jul-2023 12:24 AM

👏👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

14-Jul-2023 10:34 AM

🙏🙏

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Sushi saxena

12-Jul-2023 11:05 PM

Nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

14-Jul-2023 10:33 AM

🙏🙏

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Varsha_Upadhyay

12-Jul-2023 08:50 PM

शानदार

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Hari Shanker Goyal "Hari"

14-Jul-2023 10:33 AM

🙏🙏

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